लहू का उबाल तो हमारा खानदानी है, फ़िरभी सोच तो हमारी भी रूहानी है। लहू का उबाल तो हमारा खानदानी है, फ़िरभी सोच तो हमारी भी रूहानी है।
बरखा तेरे आने से मन मोर खिल जाता है, सूखी हुई धरती को पारस मिल जाता है। बरखा तेरे आने से मन मोर खिल जाता है, सूखी हुई धरती को पारस मिल जाता है।
हरयाणवी कविता हरयाणवी कविता
हमने अपने भूत को भविष्य का कब्रिस्तान सजाते देखा है। हमने अपने भूत को भविष्य का कब्रिस्तान सजाते देखा है।
तुम्हारी आँखों में नमी जब भी देखता हूँ , हर बार खुद को व्याकुल पाता हूँ , क्यूं चहकार भी कह न पाता ह... तुम्हारी आँखों में नमी जब भी देखता हूँ , हर बार खुद को व्याकुल पाता हूँ , क्यूं ...
इन आँखो की अनदेखी का मजा ही कुछ अलग था, तुम्हारी आँखे नीचे, तो मेरी आसमां को निहार रही थी.... इन आँखो की अनदेखी का मजा ही कुछ अलग था, तुम्हारी आँखे नीचे, तो मेरी आसमां को निह...